“ हिंन्दी उन सभी गुणो सें अभकृत है, जिसके बल पर वह विश्वं की साहित्यक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हों सकती हैं ”
– मैथिलीशरण
भारत की राष्ट्रभाषा हिंन्दी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने भाषा हैं बहुभाषी भारत के हिन्दी भाषी राज्यो की आबादी ४६ करोड से अधिक है। २०११ कि जनगणना के मुताबिक ४१.०३ की मातृभाषा हिंन्दी हैं, और इसमें दुसरी भाषा के तौर पर हिन्दीं को इस्तेमाल करनेवाले अन्य भारतियों को मिला दिया जाएँ तो देश के लगभग ७५% लोग हिन्दीं भाषी एवं पुरी दुनियां में तकरीबन ८० करोड लोग एसे है जो इसे बोल या समझ सक्ते हैं।
हिन्दी भारत की राजभाषा जो संस्कृत भाषा सें उत्पन्न हुई हे। ४ शताब्दी ईसवी में हिन्दी भाषा ब्रह्मी लिपी लिखि गई थी, लेकिन ११ शताब्दी ईसवी में तयह भाषओ देवनगरी लिपि में लिखि गई हैं। हिन्दी का साहित्य, कहानिर्यां, कविताएं, नाटक और उपन्यास जैसी समृद्ध गध-पध विधाओ सें भरा पडा हैं। हिन्दी साहित्य को चार एतिहासिक चरणो में विभाजित किया जा सकता हैं; आदिकाल (१४०० ईसवीसे पहले), भक्तिकाल (१३७५ – १७००), रीतिकाल (१६०० – १९००), आधुनिक काल (१८५० से अबतक) आदिकाल के वैदिक ग्रंथो, उपनिषदों से लेकर वर्तमान साहित्यने मनुष्य जीवन को सदैव प्रभावित किया है।
साहित्य किसी संकृतिका ज्ञात करने में मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए भक्तिकाल के साहित्य से हमें हिन्दुओ की धार्मिक परंपराओं की जानकारी मिलती है। हिन्दी साहित्य सें ह्म अपनी विरासत के बारे में सीख सकते है। हिन्दी साहित्य में भारतीय सभ्यता और मूल्य सुरक्षित है, वर्तमान पीढ़ी इन्हें अपने जीवन में उतार सकती है। हिन्दी साहित्य में कबीर, तुलसी, प्रेमचंद्र, यशपाल आदि महान कवि एवं लेखको की प्रतिभा सें पूरी दुनिया प्रभावित है। जब ह्मारा देश अग्रेजी सत्ता का ग़ुलाम था तब हिन्दी के महान साहित्यकारो की लेखनी की ओजस्विता राष्ट्र के पूर्व गौरव और वर्तमान दुर्दशा पर केंद्रित थी। इसी दॄष्टि से हिन्दी साहित्य का मह्त्व वर्तमान में भी बना हुआ है। आज के हिन्दी के महान साहित्यकार वर्तमान भारत की समस्याओं को साहित्य में पर्याप्त स्थान दे रहें है।
हर देश की भाषा उनकी संकृति और सभ्यता को पहेचान देती है, साहित्य समाज का दर्पण है। इसलिए यह प्रगति के लिए हमेशा महत्वपूर्ण रहेंगा।
“ हमारी राष्ट्रभाषा का मुख्य उदेश्य राष्ट्रीयता का दृढ निर्माण है। ’’
– चंद्रबली पांडेय